बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक काल में संस्कृति एवं सनातन धर्म के उन्नयन एवं प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से संस्थापित श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल’ कानपुर की प्रमुख धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्था है। देश में अंग्रेजी शासन स्थापित हो जाने के बाद युगधर्म के प्रभाव से देश में पाश्चात्य विचारों और प्रभावों का आगमन होने लगा था। इमारा प्राचीन धर्म समाज और संस्कृति लम्बी दासता के कारण विकार ग्रस्त हो चुके थे। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही योरोपियन ईसाइयों ने देश में ईसाई धर्म का प्रचार आरम्भ कर दिया था। सन् अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रान्ति के पश्चात विघटन और विदेशीकरण की लपटें और अधिक तीव्रता से फैलने लगीं। देश में ईसाई धर्म का प्रसार बढ़ जाने के कारण, हमारे श्रुति सम्मत, स्मृति-प्रतिपादित वैदिक धर्म की उपेक्षा होने लगी। अतः तत्कालीन समाज सुधारक और धर्माचार्य इसकी रक्षा, उन्नयन और उत्कर्ष के लिए सन्नद्ध हो गये। अपनी महान संस्कृति के उत्थान हेतु इस प्रकार के धार्मिक आन्दोलनों का केन्द्र काशी में रहा, फलतः वहां श्री 108 स्वामी ज्ञानानन्द जी नामक महान संत एवं सन्यासी ने जगद्गुरुशंकराचार्य के महान मम्मानदर्शों का अनुवर्तन करते हुए सनातन धर्म के सिद्धान्तों पर आधारित भारतीय समाज की व्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयास किया, इस कार्य की सिद्धि के लिए बीसवीं शताब्दी का आरम्भ होते-होते अखिल भारतीय स्तर पर ‘भारत धर्म महामण्डल’ संस्था की स्थापना की गई, जिसकी शाखाएं-प्रशाखाएं शीघ्र ही सम्पूर्ण देश में खुलने लगीं। ‘भारत धर्म महामण्डल’ के तत्वावधान में संचालित इस धर्मयज्ञ मं देश के अनेक हिन्दू राजाओं-महाराजाओं, जमींदारों और धनाढ्यों का पुरजोर समर्थन प्राप्त हुआ। महामना पं. मदन मोहन मालवीय सदृश महापुरुषों की प्रेरणा एवं सहयोग इस धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान के कार्य अभियान को गति मिली।
इस महान धार्मिक आन्दोलन में कानपुर ने भी अपना सहयोग प्रदान किया। यहाँ भी कुछ धर्मानुरागी महानुभाव अपने प्रकार धर्म एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु तन-मन-धन से समर्पित हो गये। फलस्वरूप बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक की समाप्ति होते-होते नगर में श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल की स्थापना हो गयी। स्वामी ज्ञानानन्द जी (काशी) के सुयोग्य शिष्य स्वामी दयानन्द जी की अग्रगण्य भूमिका में सन् 1910 ई. में ‘श्री विक्रमाजीत सिंह एवं श्री राम देवीप्रसाद ‘पूर्ण’ के समर्पित प्रयासों से सनातन धर्म की रक्षा एवं उसके पुनरुद्धार के महान प्रयास किये गये। प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात रायबहादुर बाबू विक्रमाजीत सिंह के नेतृत्व में सनातन धर्म महामण्डल के कार्यों का विस्तार होने लगा। सन् 1917 में सनातन धर्म भवन निर्मित कराया गया तथा सनातन धर्म के प्रचार के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्यों एवं धार्मिक आयोजनों का आयोजन होने लगा। महामण्डल की नींव जिन स्तम्भों पर निर्मित हुई उनमें प्रदेश के वरिष्ठ अधिवक्ता राय बहादुर विक्रमाजीत सिंह, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता, कवि और साहित्यकार श्री राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण’, साहित्यकार पं. प्रताप नारायण मिश्र प्रतिष्ठित व्यवसायी रायविशम्भरनाथ, धर्मनिष्ठ पं. दुर्गाप्रसाद बाजपेयी आदि प्रमुख थे। अपने जन्म काल से आज प्रथम शताब्दी के समापन तक यह सनातन धर्म महामण्डल शैक्षिक उन्नयन, धर्म प्रचार, चिकित्सा सेवा इत्यादि के लिए समर्पित संस्थाओं के माध्यम से अपने पावन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत प्रयत्नशील है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा भारतीय संस्कृति के अनुरूप गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए उसकी ख्याति प्रदेश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण देश में फैल गई है।
सनातन धर्म महामण्डल का कार्य तीन भागों में विभक्त है-
1: शिक्षा प्रचार
2: चिकित्सा
3: धर्म प्रचार कार्य
शिक्षा प्रचार - ‘देश में प्रवर्तित होने वाले नवजागरण के अन्तर्गत नूतन-पद्धति की शिक्षा में सनातन मानव धर्म की शिक्षा को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया जाये, जिससे हमारी सांस्कृतिक क्षति न हो तथा हम अपनी प्राचीन गौरवपूर्ण भारतीय परम्पराओं की दिव्य ज्योति को अखण्ड रूप में जाग्रत रख सकें। इस उद्देश्य से सनातन धर्म महामण्डल के अन्तर्गत शिशु कक्षा से लेकर महाविद्यालय स्तर तक अनेक शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से संस्कारसम्मत शिक्षा प्रदान करने का गुरुतर दायित्व सम्यक् रूप से संचालित किया जा रहा है। श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं की समाज में अपनी विशिष्ट पहचान है। प्रमुख शिक्षण संस्थाओं के नाम निम्नवत् उल्लिखित हैं -
1. सनातन धर्म विद्यालय, मेस्टन रोड, कानपुर
2. विश्वम्भर नाथ सनातन धर्म इण्टरमीडिएट कालेज, चुन्नीगंज, कानपुर
3. विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म महाविद्यालय, नवाबगंज, कानपुर
4. पं. दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय इण्टर कालेज, नवाबगंज, कानपुर
5. बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन इण्टर कालेज, बेनाझाबर, कानपुर
6. सेठ मोतीलाल खेड़िया सनातन धर्म इण्टर कालेज, विष्णुपुरी कानपुर
7. बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन बालिका विद्यालय, मेस्टन रोड, कानपुर
8. दुर्गावती दुर्गाप्रसाद सनातन धर्म बालिका इण्टर कालेज, आजाद नगर, कानपुर
9. बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन प्राइमरी विद्यालय
10. श्रीमती नारायणी देवी सनातन धर्म विद्यालय, तात्यागंज, कानपुर
श्री सनातन धर्म औषधालय, कानपुर - श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल के द्वारा सन् 1917 ई. में मेस्टन रोड में एक आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना की गई थी, जो कुशल वैद्य आयुर्वेदाचार्य पं. संजय देव जी की देख-रेख में सुचारू रूप से चलता रहा।
धर्म प्रचार कार्य - सनातन धर्म की प्रतिष्ठा और प्रचार ही सनातन धर्म महामण्डल की स्थपना का मुख्य उद्देश्य रहा है। महामण्डल के कार्य अपने भवन में सम्पन्न हो सकें, इस हेतु धर्मशील महानुभावों के प्रयत्नों से एक बड़े भवन की रचना की गई, जिसका शिलान्यास कार्तिक शुक्ल 13 संवत् 1974 तदनुसार 26 नवम्बर, 1917 को धर्मालंकार रायबहादुूर बाबू विक्रमाजीत सिंह जी के द्वारा सम्पन्न हुआ था। कालान्तर में सन्त-महात्माओं के प्रवचन एवं उपदेश, उच्च कोटि के विद्वानों के भाषण, साप्ताहिक-पाक्षिक एवं मासिक कीर्तन, श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, श्रीमद्भागवतकथा आदि कार्यक्रमों का आयोजन उत्साहपूर्वक सम्पन्न होने लगा। तब से लेकर आज तक सनातन धर्म महामण्डल धर्म प्रचार हेतु पूरी निष्ठा से क्रियाश्ीाल है।
सनातन धर्म पुस्तकालय एवं वाचनालय - धार्मिक साहित्य के संकलन और पठन-पाठन की सुविधा एवं प्रचार की दृष्टि से सनातन धर्म पुस्तकालय एवं वाचनालय की स्थापना की गई थी जिसमें धार्मिक पुस्तकों का एक अति विशाल संग्रह है।
गीता-रामायण परीक्षा - विद्यार्थियों में रामायण और गीता के माध्यम से धार्मिक संस्कारों की नींव डालने के उद्देश्य से अलग-अलग आयु वर्ग के लिए, अलग-अलग परीक्षा पाठ्यक्रम नियोजित किये गये। तदनुसार सभी स्कूलों एवं कालेजों में ये परीक्षाएं आयोजित की जाने लगीं और उत्तीर्ण विद्यार्थियों को उपाधि पत्र एवं पारितोषित भेंट किये जाने लगे। तब से आज तक श्रीगीता रामायण परीक्षा विद्यार्थियों में धर्म एवं संस्कृति के मूल्यों को विकसित-पुष्पित-पल्लवित करने हेतु सतत् प्रयत्नशील है।
इस महान धार्मिक आन्दोलन में कानपुर ने भी अपना सहयोग प्रदान किया। यहाँ भी कुछ धर्मानुरागी महानुभाव अपने प्रकार धर्म एवं संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु तन-मन-धन से समर्पित हो गये। फलस्वरूप बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक की समाप्ति होते-होते नगर में श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल की स्थापना हो गयी। स्वामी ज्ञानानन्द जी (काशी) के सुयोग्य शिष्य स्वामी दयानन्द जी की अग्रगण्य भूमिका में सन् 1910 ई. में ‘श्री विक्रमाजीत सिंह एवं श्री राम देवीप्रसाद ‘पूर्ण’ के समर्पित प्रयासों से सनातन धर्म की रक्षा एवं उसके पुनरुद्धार के महान प्रयास किये गये। प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात रायबहादुर बाबू विक्रमाजीत सिंह के नेतृत्व में सनातन धर्म महामण्डल के कार्यों का विस्तार होने लगा। सन् 1917 में सनातन धर्म भवन निर्मित कराया गया तथा सनातन धर्म के प्रचार के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्यों एवं धार्मिक आयोजनों का आयोजन होने लगा। महामण्डल की नींव जिन स्तम्भों पर निर्मित हुई उनमें प्रदेश के वरिष्ठ अधिवक्ता राय बहादुर विक्रमाजीत सिंह, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता, कवि और साहित्यकार श्री राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण’, साहित्यकार पं. प्रताप नारायण मिश्र प्रतिष्ठित व्यवसायी रायविशम्भरनाथ, धर्मनिष्ठ पं. दुर्गाप्रसाद बाजपेयी आदि प्रमुख थे। अपने जन्म काल से आज प्रथम शताब्दी के समापन तक यह सनातन धर्म महामण्डल शैक्षिक उन्नयन, धर्म प्रचार, चिकित्सा सेवा इत्यादि के लिए समर्पित संस्थाओं के माध्यम से अपने पावन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत प्रयत्नशील है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा भारतीय संस्कृति के अनुरूप गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए उसकी ख्याति प्रदेश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण देश में फैल गई है।
सनातन धर्म महामण्डल का कार्य तीन भागों में विभक्त है-
1: शिक्षा प्रचार
2: चिकित्सा
3: धर्म प्रचार कार्य
शिक्षा प्रचार - ‘देश में प्रवर्तित होने वाले नवजागरण के अन्तर्गत नूतन-पद्धति की शिक्षा में सनातन मानव धर्म की शिक्षा को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया जाये, जिससे हमारी सांस्कृतिक क्षति न हो तथा हम अपनी प्राचीन गौरवपूर्ण भारतीय परम्पराओं की दिव्य ज्योति को अखण्ड रूप में जाग्रत रख सकें। इस उद्देश्य से सनातन धर्म महामण्डल के अन्तर्गत शिशु कक्षा से लेकर महाविद्यालय स्तर तक अनेक शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से संस्कारसम्मत शिक्षा प्रदान करने का गुरुतर दायित्व सम्यक् रूप से संचालित किया जा रहा है। श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं की समाज में अपनी विशिष्ट पहचान है। प्रमुख शिक्षण संस्थाओं के नाम निम्नवत् उल्लिखित हैं -
1. सनातन धर्म विद्यालय, मेस्टन रोड, कानपुर
2. विश्वम्भर नाथ सनातन धर्म इण्टरमीडिएट कालेज, चुन्नीगंज, कानपुर
3. विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म महाविद्यालय, नवाबगंज, कानपुर
4. पं. दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय इण्टर कालेज, नवाबगंज, कानपुर
5. बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन इण्टर कालेज, बेनाझाबर, कानपुर
6. सेठ मोतीलाल खेड़िया सनातन धर्म इण्टर कालेज, विष्णुपुरी कानपुर
7. बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन बालिका विद्यालय, मेस्टन रोड, कानपुर
8. दुर्गावती दुर्गाप्रसाद सनातन धर्म बालिका इण्टर कालेज, आजाद नगर, कानपुर
9. बी.एन.एस.डी. शिक्षा निकेतन प्राइमरी विद्यालय
10. श्रीमती नारायणी देवी सनातन धर्म विद्यालय, तात्यागंज, कानपुर
श्री सनातन धर्म औषधालय, कानपुर - श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल के द्वारा सन् 1917 ई. में मेस्टन रोड में एक आयुर्वेदिक औषधालय की स्थापना की गई थी, जो कुशल वैद्य आयुर्वेदाचार्य पं. संजय देव जी की देख-रेख में सुचारू रूप से चलता रहा।
धर्म प्रचार कार्य - सनातन धर्म की प्रतिष्ठा और प्रचार ही सनातन धर्म महामण्डल की स्थपना का मुख्य उद्देश्य रहा है। महामण्डल के कार्य अपने भवन में सम्पन्न हो सकें, इस हेतु धर्मशील महानुभावों के प्रयत्नों से एक बड़े भवन की रचना की गई, जिसका शिलान्यास कार्तिक शुक्ल 13 संवत् 1974 तदनुसार 26 नवम्बर, 1917 को धर्मालंकार रायबहादुूर बाबू विक्रमाजीत सिंह जी के द्वारा सम्पन्न हुआ था। कालान्तर में सन्त-महात्माओं के प्रवचन एवं उपदेश, उच्च कोटि के विद्वानों के भाषण, साप्ताहिक-पाक्षिक एवं मासिक कीर्तन, श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, श्रीमद्भागवतकथा आदि कार्यक्रमों का आयोजन उत्साहपूर्वक सम्पन्न होने लगा। तब से लेकर आज तक सनातन धर्म महामण्डल धर्म प्रचार हेतु पूरी निष्ठा से क्रियाश्ीाल है।
सनातन धर्म पुस्तकालय एवं वाचनालय - धार्मिक साहित्य के संकलन और पठन-पाठन की सुविधा एवं प्रचार की दृष्टि से सनातन धर्म पुस्तकालय एवं वाचनालय की स्थापना की गई थी जिसमें धार्मिक पुस्तकों का एक अति विशाल संग्रह है।
गीता-रामायण परीक्षा - विद्यार्थियों में रामायण और गीता के माध्यम से धार्मिक संस्कारों की नींव डालने के उद्देश्य से अलग-अलग आयु वर्ग के लिए, अलग-अलग परीक्षा पाठ्यक्रम नियोजित किये गये। तदनुसार सभी स्कूलों एवं कालेजों में ये परीक्षाएं आयोजित की जाने लगीं और उत्तीर्ण विद्यार्थियों को उपाधि पत्र एवं पारितोषित भेंट किये जाने लगे। तब से आज तक श्रीगीता रामायण परीक्षा विद्यार्थियों में धर्म एवं संस्कृति के मूल्यों को विकसित-पुष्पित-पल्लवित करने हेतु सतत् प्रयत्नशील है।
सभापति
राय देवी प्रसाद जी ‘पूर्ण’ | सन् 1910 से 1914 तक |
पं0 दुर्गा प्रसाद जी बाजपेई | सन् 1914 से 1916 तक |
राय बहादुर बाबू विक्रमाजीत सिंह जी | सन् 1916 से 1941 तक |
पं0 गिरधर दास जी भार्गव | सन् 1941 से 1951 तक |
श्री द्वारिका प्रसाद सिंह जी | सन् 1951 से 1956 तक |
श्री नरेन्द्र जीत सिंह जी | सन् 1956 से 1993 तक |
श्री राम बालक मिश्र | सन् 1993 से जून 2013 तक |
श्री कृष्ण गोपाल लाहोटी | सन् 2013 से जून 2014 तक |
श्री हरिकृष्ण सेठ | सन् 2014 से जून 2014 तक |
श्री वीरेन्द्रजीत सिंह | जून 2014 से |
कार्यकारिणी समिति
क्र.स. | नाम | पद | पता | दूरभाष |